अशोक द्वारा भेजे गए बौद्ध प्रचारक
सम्राट ने अपने पुत्र महेंद्र एवं पुरी संधमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए की लंका भेजा था।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए विभिन्न स्थानों या मिशनरियों को भेजा उनके पुत्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था। ताकि वे वहां बौद्ध धर्म का प्रचार कर सके, अशोक ने धम्म की अवधारणा का प्रसार करना चाहा जो समाज के विभिन्न सम्प्रदायों और वर्गे को एकजुट करने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सार्वभौमिक भाईचारे के विचारों को बढ़ाना देने में मदद करता। इसके अतिरिक्त, अशोक ने विभिन्न क्षेत्रों में दूतावास भी भेजे जिनमें-
सीरिया- सम्राट अशोक ने सीरिया (सीरियाई साम्राज्य) में बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया था। उन्होंने अपने दूतों और शिलालेखों के माध्यम से इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। अशोक के शिलालेखों में सीरिया का उल्लेख मिलता है सीरिया में बौद्ध धर्म का प्रसार 200ईसा पूर्व से शुरू हुआ था जो कि 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जारी रहा, अशोक के शासनकाल के दौरान 268 से 232 ईसा पूर्व तक चला।
मिस्र- मिस्र देश में बौद्ध धर्म के प्रचारके प्रमाण मिले है मिस्र के प्राचीन बंदरगाह वेनिंस में खुदाई के दौरान दूसरी शताब्दी की बुद्ध की एक मूर्ति और संस्कृत में शिलालेख मिले है, इसमें पता चलता है कि रोमन साम्राज्य के समय में भारत और मिस्र के बीच व्यापारिक संबंध थे । बौद्ध धर्म का प्रचार भी इसी मार्ग से हुआ होगा।
बौद्ध धर्म श्रीलंका, थाईलेाड, म्यांमार, चीन, जापान, कोरिया, नेपाल, भूटान और अमेरिका जैसे कई देशों में फैला।
बौद्ध के शिष्यों ने घुमक्कड़ भिक्षुओं के रूप में यात्रा की और भारत और उसके बाहर बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार किया।
अशोक ने धम्म (धम्र) महामात्र नायक अधिकारियों की नियुक्ति की, जिनका काम विभिन्न सम्प्रदायों के बीच सद्भाव स्थापित करना और बौद्ध धर्म का प्रचार करना था। अशोक ने पूरे साम्राज्य में 84000 स्तूपों का निर्माण करवाया जो बौद्ध धर्म के प्रतीक थे।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए मज्झिम (हिमालयी क्षेत्र के लिए)
महारक्खिता (योन या ग्रीस के लिए)
महाधम्मरक्खिता (महाराष्ट्र के लिए)
सोना और उत्ररा (सुवर्णभूमि या दक्षिण-पूर्वी एशिया के लिए)